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हँसी फूटती रहे / सूर्यपाल सिंह

षापित यक्ष नहीं हूँ मैं
कि तुम्हें भेज दूँगा अलका
प्रेयसी के पास ओ मेघ!
मैं चाहता हूँ
राम गिरि-अलका के बीच
झमक कर बरसो
जिससे धान रोपती
सखियों से ठिठोली करती छोरियाँ
गा सकें हरेरी गीत
और भर उठें
उनके कुठले कोठार
जिससे चिड़ियों से खेलती
दाना चुगाती
छोरियों की हँसी फूटती रहे पूरे वर्श।