हँस रहा है उधर
धूप में खड़ा पूरा पहाड़
खोल कर मोटे बड़े होंठ ।
और चट्टानी जबड़े ।
रो रहा है इधर
शोक में पड़ा जन-समुदाय
काट कर कामकाजी हाथ
तोड़ कर छाती तगड़ी ।
रचनाकाल: १०-०९-१९६२
हँस रहा है उधर
धूप में खड़ा पूरा पहाड़
खोल कर मोटे बड़े होंठ ।
और चट्टानी जबड़े ।
रो रहा है इधर
शोक में पड़ा जन-समुदाय
काट कर कामकाजी हाथ
तोड़ कर छाती तगड़ी ।
रचनाकाल: १०-०९-१९६२