Last modified on 12 दिसम्बर 2007, at 02:37

हंस के समान दिन / त्रिलोचन


हंस के समान दिन उड़ कर चला गया

अभी उड़ कर चला गया

पृथ्वी आकाश

डूबे स्वर्ण की तरंगों में

गूँजे स्वर

ध्यान-हरण मन की उमंगों में

बन्दी कर मन को वह खग चला गया

अभी उड़ कर चला गया

कोयल सी श्यामा सी

रात निविड़ मौन पास

आयी जैसे बँध कर

बिखर रहा शिशिर-श्वास

प्रिय संगी मन का वह खग चला गया

अभी उड़ कर चला गया