हई गई फ़सल जवान रे धनुआ, हई गई फ़सल जवान
हई गई फ़सल जवान रे हरिया, हई गई फ़सल जवान
देख-देख के फ़सल लहरती
अपना लगे जहान रे फुलवा, हई गई फ़सल जवान
घबराओ मत रघ्घू काका मेहनत के बदले
एक भी दाना बनिए को हम न देंगे सुन ले
गाँव-भर की धरती चाहे हो जाए लहू-लुहान रे ...
अब न पड़ेंगे, भैया, साहूकार के पाँव में
घुस के ले देख दरोगा अब के रे गाँव में
हरी-भरी ये फ़सल हमारी, लेंगे सीना तान रे
खटते-खटते बीत गया रे सारा ही जीवन
सपने में ही ख़ुशियाँ देखी हैं रे तूने मन
अब की बार निकालेंगे हम मन के अरमान रे ...