अंदर-अंदर आग सुलगती
बाहर-बाहर पानी
सबके दिल हैं घायल-घायल
मुऽड़ा है लासानी
ज्ञानवान की पूछ नहीं है
ध्नवानों की पूजा
जिसकी मुट्टòी में ध्न-दौलत
वैसा और न दूजा
कुर्सी ऽातिर रगड़ा-झगड़ा
नेताओं का किस्सा
कितने मोटे दीऽ रहे हैं
ऽाकर सबका हिस्सा
हंस यहाँ भूऽे मरते हैं
बगुले राज चलाते
स्वर्ण भस्म कुर्सी वालों के
निधर््न घास चबाते
कितने मर गए कुर्सी ऽातिर
कितनों का ईमान बिका
शैतानों की इस बस्ती में
घुट-घुट का इंसान बिका
मजहब को औजार बनाकर
राज चलाना धेऽा है
याद हमें रऽना है इतना
अब इंसान न ऽोऽा है।