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हत्या एक कला है / स्वप्निल श्रीवास्तव

हत्या एक कला है
कहता है शहर का एक प्रमुख हत्यारा

वह कहता है- भला यह कोई हत्या हुई
कि आदमी पहले वार में मर जाए
आदमी को धीरे-धीरे मारा जाना
चाहिए
ताकि लोग यह समझ सकें कि
हत्याएँ अब सरल नहीं रह गई हैं

हत्याएँ इस तरह की जा रही हैं कि
हत्याओं का कोई सबूत नहीं मिलता
और यही कला है जिससे हत्यारे
पकड़ में नहीं आते

हमारे पास बचने की वज़हें हैं
और हत्यारों के पास हत्या के
तमाम तर्क हैं