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हमने तो दर्द गाया / नरेन्द्र दीपक

हमने तो दर्द गाया, कोई ग़ज़ल नहीं
आँसू में मन डुबाया, कोई ग़ज़ल नहीं।

बीमार ज़िन्दगी ने जो है दिया हमें
वह राज़ गुनगुनाया कोई ग़ज़ल नहीं।

वह सुबह की उदासी ये शाम तन्हा-तन्हा
हम को ये रास आया कोई ग़ज़ल नहीं।

जिस में दिखा है अपने जज़्बात का लहू
वह दृष्य बहुत भाया कोई ग़ज़ल नहीं।

दाता की मेहरबानी हम को मिली वसीयत
केवल दुखों की छाया कोई ग़ज़ल नहीं।

वो मौन हो गये हैं वो झुक गईं निगाहें
वो दर्द मुस्कुराया कोई ग़ज़ल नहीं।

किस्मत में प्यास लिख दी फिर दे दिये समन्दर
हँस के ये दुख उठाया कोई ग़ज़ल नहीं।

दुख का बयान है ये ‘दीपक’ सुना रहा है
औ सुन रही रिआया कोई ग़ज़ल नहीं।