Last modified on 16 जून 2020, at 19:31

हमने देखा है / विनय सिद्धार्थ

खामोश निगाहों में हमने हलचल भी पलते देखा है।
पानी से लोगों के हमने हाथ भी जलते देखा है।
बहुत ज़्यादा गुरूर है, उन्हें अपनी रौशनी पर,
मगर बुझते चरागों को, सूरज को ढलते देखा है।
सब कहते हैं नामुमकिन है ऐसा हो नहीं सकता,
मगर दिन में भी छत पर हमने चाँद निकलते देखा है।
मेरे सामने वह कहते हैं कि तुम जान हो मेरी,
दूर जाते ही लोगों को अक्सर बदलते देखा है।
बहुत मुश्किल है "विनय" किसको क्या कहा जाये,
अंधेरों को भी हमने उजाले निगलते देखा है।