Last modified on 3 फ़रवरी 2009, at 23:24

हमने ही लौटने का / परवीन शाकिर

हमने ही लौटने का इरादा नहीं किया
उसने भी भूल जाने का वादा नहीं किया

दुःख ओढ़ते नहीं कभी जश्ने-तरब में हम
मलाबूसे-दिल को तन का लाबादा नहीं किया

जो ग़म मिला है बोझ उठाया है उसका ख़ुद
सर-ज़ेर-बारे-सागरो-बादा नहीं किया

कारे-जहाँ हमें भी बहुत थे सफ़र की शाम
उसने भी इल्तिफ़ात ज़ियादा नहीं किया

आमद पे तेरे इतरो-चरागो-सुबू न हो
इतना भी बूदो-बाश तो सादा नहीं किया