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हमराही जब हो मस्ताना / मजरूह सुल्तानपुरी

फिर चलने वाले रुकते हैं कहाँ

हमराही जब हो मस्ताना मौज में हो दिल दीवान
फिर चलने वाले रुकते हैं कहाँ
ये खुमार ये नशा जवाँ बेख़ुदी
अब न कोई नगर न कोई गली
दिन वहाँ रात यहाँ
डगमग चलना शहरों में बाज़ारों में
महके\-महके फिरना गुलज़ारों में
हम दिलवाले चँचल ऐसे तौब
हलचल सी पड़ जाये दिलदारों में
इस मस्ती में सब चलता है
अब कोई क्या सोच रहा है
हम मतवाले क्या जानें

चढ़ती जवानी तेरी\-मेरी
मिल जाने में काहे की है देरी
जोश में आके चल निकले हैं हम यारा
होने दे धड़कन की हेरा\-फेरी
प्यार की रस्में फिर सोचेंगे
ठीक है क्या और गलती क्या है
हम मतवाले क्या जानें