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हमरा जीवन के दिन खतम हो जाई / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / सिपाही सिंह ‘श्रीमंत’

हमरा जीवन के दिन खतम हो जाई
बाकिर तहरा के खोजल बंद ना होई।
जब हम नया जीवन पाएब
आँख का सोझा नया-नय दृश्य आई।
नया आलोक में नया बन जाएब हम
नया जीवन नया मिलन-डोर से बन्हई।
सब कुछ नया-नय होई
बाकिर तहरा के खोजल बंद ना होई।
तहार अंत नइखे, हे प्रभु, अंत नइखे
एही से तहार नित नवीन लीला
नित नवीन रूप में उजागर होला।
हे नाथ, ना जानीं जे कवना भेस में तूं
कब हमरा बीच राह में ठाढ़ हो जइबऽ?
आ कब हमरा नजदीक आके
हँसते-हँसत हमर हथ थम लेबऽ?
हमरा हृदय में
नया-नय भवन के भीड़ लग जई।
हमरा ए जीवन के अंत हो जाई
बाकिर तहरा के खोजल बंद ना होई।