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हमरोॅ शब्द / अशोक शुभदर्शी

खिंचलोॅ चल्लोॅ जाय छै
अक्षर-अक्षर
शब्द रुपायित-
रोमांटिक होय केॅ
चोला बदली केॅ
तोरोॅ भाशा में
सभ्य-शालीन
सांस्कृतिक बनी केॅ
अतीत केॅ गुफा में
परम्परा केरोॅ गोद-शिशु बनी केॅ

आरोॅ हम्में
रही जाय छियै
आपनोॅ हाथ मली केॅ
देखी केॅ
निकलतें शब्दोॅ केॅ

जेकरा पर भरोसा छेलै कि
ई रहतै हमरोॅ होय केॅ
रहतै ई अक्षर-शब्द
हमरोॅ विचार बनी केॅ


हमरोॅ कारगर हथियार बनी केॅ
ई बनतै छनी केॅ हमरोॅ ताकत

हम्मेॅ सहेजलेॅ छेलियै
सुलगैलेॅ छेलियै
आग बनैलेॅ छेलियै
आपनोॅ आँखोॅ में
इनकलाब केॅ बीज बनाय केॅ
नुकीलोॅ, तीखोॅ, धारदार
केना केॅ निकली गेलै हमरोॅ हाथोॅ सें
निर्वाक देखतैं रहलियै हम्में
इनकोॅ फिसलवोॅ

ऐ हमरोॅ शब्द
की तोरा लागलोॅ सच्चै में कि
अतीत लौटी गेलोॅ छै
परम्परा केरोॅ रास्ता सें
आरोॅ तोंय होय गेल्होॅ भ्रमित
या कि पड़ी गेल्होॅ कैदोॅ में
अपहृत होय केॅ

हम्में जानै छियै
तोंय लौटभोॅ
हमरेॅ ठियां
तोंय जीवित नै रहै लेॅ पारभोॅ
ऊ जहर सें भरलोॅ हवा में
तोरोॅ प्राण-वायु तेॅ
हमरोॅ चेतना में छै ।