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हमला / कुमार कृष्ण

पहुँच चुके हैं बेशुमार लोग
बड़ी-बड़ी झोलियों के साथ
गाँव-गाँव तक
जीभ और दातुन के रिश्ते को मिटाने
बाँट रहे हैं दिन-रात
तरह-तरह के दन्त-मंजन
आधी-पौनी कीमत में
उनके पास हैं तरह-तरह के जादुई साबुन
ख़ुशबूदार तेलों की शीशियाँ
एक रात में बदल देते हैं चमड़ी का रंग
वे आये हैं गोरों के देश से
पूरी दुनिया को गोरा बनाने
सत्तू खाते-खाते लगाती है माँ ज़ोर से आवाज़-
रुको, मुझे भी खरीदना है जादुई साबुन
शायद हो जाए उसकी साँवली बेटी का रिश्ता
किसी गोरे आदमी के साथ
माँ समझती है-
आये हैं सतयुग के लोग
वही दे सकते हैं एक ख़रीद पर दो मुफ़्त में
दोस्तो-
कितना सुन्दर, कितना अद्भुत
कितना लुभावना, कितना आकर्षक
कितना म्युजीकल, कितना खामोश
कितना हँसमुख, कितना खतरनाक है यह बाज़ार का हमला
सोचता हूँ जब आएँगी बड़ी-बड़ी चीज़ें
तब बच पाएगा कैसे-
रघुवीर सहाय का दयाशंकर, जगूड़ी का बलदेव खटिक
ऋतुराज का हसरूद्दीन, कुमार कृष्ण का छेरिंग दोरजे
ज्ञानेन्द्रपति का रामखेलावन, राजेश जोशी का रमजान मियाँ
मुश्किल बहुत मुश्किल है-
प्रेमचन्द के हल्कू का बच पाना
जब तमाम खेत बदल जाएँगे शॉपिंग माल में
तब कहाँ बनाएगा हल्कू अपना छोटा सा मचान।