बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
हमसें बलम सें ऐसी बिगरी
मोरी कतरी सुपारी न खायें।
सोने की थारी में जेवनार परोसा
हमसें बलम सें ऐसी बिगरी
वे तो जेवै बहना घर जायें।
चाँदी के लोटा में पानी परोसो
हमसें बलम सें ऐसी बिगरी
वे तौ पीवे बुआ के घर जायें।
हमसें बलम सें ऐसी बिगरी
मोरी कतरी सुपारी न खायें।
पाना पचासी कौ बीरा लगायौ। हमसें...
वे तो चावन तमोलिन के घर जायें।
फूलों की सेज मोती झालर कौ तकिया
हमसें बलम सें ऐसी बिगरी
वे तो सोवै सोतन घर जायें।