विकसित देशों में एक समय,
प्रत्येक असभ्य, निरक्षर था।
तब भारत का विज्ञान-ज्ञान,
अपने सर्वोच्च शिखर पर था॥
होते थे नित नव शोध यहाँ,
मन में नवीन अभिलाषा थी।
आधे जग में उस काल हाय!
फैली घनघोर निराशा थी।
हाँ! प्राप्त हुआ था आत्मज्ञान,
हमको जब वैदिक मन्त्रों से।
अगणित देशों में मूकों-सी,
केवल साङ्केतिक भाषा थी।
उन निर्वस्त्रों का भोजन भी,
जब मृत जीवों पर निर्भर था।
तब भारत का विज्ञान-ज्ञान,
अपने सर्वोच्च शिखर पर था॥
दिनकर के दीपित पूण्य तेज का,
सञ्चालन नस-नस में था।
अत्यन्त क्लिष्ट प्रश्नों का हल,
केवल आर्यों के वश में था।
थे बड़े-बड़े आयुध कर में,
पर सङ्ग शान्ति थी, संयम था।
दिव्यास्त्र, अचूक, शब्दभेदी,
शर भी इनके तरकश में था।
जब शेष जातियों के कर में,
लड़ने को एक न पत्थर था।
तब भारत का विज्ञान-ज्ञान,
अपने सर्वोच्च शिखर पर था॥
प्रज्ज्वलन कला में शून्य अन्य,
जब कच्चा मांस चबाते थे।
उत्तम स्वर्गीय व्यञ्जनों का,
हम छक कर भोग लगाते थे।
दुर्विध युरोप जब सोता था,
शैलों की गहन गुफाओं में,
सन्ध्या को दीपदान कर हम,
निज सदनों में इठलाते थे।
समृद्धि हमारी सङ्गन थी,
उनका जीवन अति दुष्कर था।
तब भारत का विज्ञान-ज्ञान,
अपने सर्वोच्च शिखर पर था॥
जब शस्त्र त्याग सम्राटों में,
भिक्षाटन की इच्छा आयी।
बलहीन, निरङ्कुश लोग हुये,
सूचना शत्रुओं ने पायी।
हिंसक-अतृप्त। नर पशुओं का,
आक्रमण भयानक रूप लिया।
क्रमवार हजारों वर्षों तक,
भीषण बर्बरता बरपायी।
जब तक सङ्गठित रहे हम सब,
हर शत्रु काँपता थर-थर था।
तब भारत का विज्ञान-ज्ञान,
अपने सर्वोच्च शिखर पर था।
हम पुनः सङ्गठित हुए, पुनः
अतुलित खुशहाली छायी है।
धरती से लेकर अन्तरिक्ष तक,
नव निर्भरता आयी है।
जो भी हैं, इतने सक्षम हैं,
अब कोई वार न कर सकता।
हर दुर्धर देशों को भी अब,
यह बात समझ में आयी है।
जन-जन अति क्रियाशील था, जब
अन्तः में स्नेह परस्पर था।
तब भारत का विज्ञान-ज्ञान,
अपने सर्वोच्च शिखर पर था॥
विकसित देशों में एक समय,
प्रत्येक असभ्य, निरक्षर था।
तब भारत का विज्ञान-ज्ञान,
अपने सर्वोच्च शिखर पर था॥