हमारी टक्कर उनसें थी
जिनके भीतर संवेदनाओं
की सिल्ली जम चुकी थी
हम तो भाग्यशाली ठहरे
अपन लोगों के भीतर
उद्वेलना की भाँप
अक्सर एक तरंग छोड़ जाया करती है
अपने हुनर को सान पर चढ़ाते हुए हम
अपनी
संवेदनाओं की बत्ती बनाकर
कविताई में रोशनी कर लिया करते हैं
कभी-कभार जुमलों को
सुतली-बम की तरह ज़मीन पर पटक कर
एक-आध धमाका भी कर लेते हैं
हम इसी में ख़ुश हो
सीने के आयतन को कुछ इंच बढ़ा कर
ख़ुशी में गुदबुदाने लगते हैं
हम कवि हैं
कविता हमारा पेट भरती है
दुःख की अंतिम अवस्था में पहुँच
कविता की दरो-दीवार से सिर मार लेते हम
हमारा लोकतंत्र हमारे पाँव की बेड़ी हैं
सिर्फ आकाश ही सदा हमारा रहा है
जिसकी ओर मुँह कर हम लम्बी साँसें छोड़ते हैं
हम अपनी नियति में चारों कोनों से बँधे हैं
कोई हम कवियों को अन्यथा ना ले
कृपया हमें हमारे हाल पर छोड़ दिया जाए