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हमारा परिवार / नरेश अग्रवाल

जानते थे हम यह सबक
रखे जायेंगे जब टोकरी में आम
कोई नीचे होगा, कोई ऊपर
सभी का अपना- अपना भाग्य
इसलिए ईष्या॔ से दूर थे हम
और किसी दिन उत्सव पर
मिलते थे हम एक साथ
बैठते थे एक जगह खाते और गप्पें लड़ाते
लगता था एक ही खून, एक ही आत्मा
डोल रही है चारों ओर
और अगर कभी किसी ने ठुकराया भी दूसरे को,
फिर प्यार किया पहले की तरह
कभी-कभी अलग भी हो जाते थे हम
अलग-अलग द्वार की तरह
फिर वापस एक जैसे,
जैसे एक ही घर के
अलग-अलग द्वार ।