कह रहा सदियों का इतिहास,
हमारा भारत देश महान !
जहाँ की धरती पर स्वयमेव, प्रकृति ने रची कहानी है,
मृदुल झरनों के कलरव में गारही जिसे हिमानी है,
जहाँ की परिणीता पूनम,
जहाँ का बन्दी स्वर्ण विहान,
स्वर्ण की लंका पर रख चरण कुमारी अंतरीप धो रही,
विजय-श्री सागर की साकार भुजाओं में बँध कर सो रही,
विहंसता चन्द्रानन कश्मीर,
हिमालय से पाकर वरदान !
यहीं से जग के मानव को मनुजता की अमूल्य निधि मिली,
यही है राम कृष्ण की भूमि यहीं गीता की कलिका लिखी,
हुआ भौतिकता के तम पर,
उदय आलोक ब्रह्म -विज्ञान !
सिन्धु, सतलज, गोमा, गंगा, व्यास, झेलम की घाटी है,
यही सरहिन्द किले से ध्वनि उठ रही हल्दी घाटी है,
हुुये हैं मातृभूमि के लिये,
महल के शिशु हंस-हंस बलिदान !
यहीं की वीर नारियों का, विश्व के गीतों में रवह ै,
वीर दुर्गावति, लक्ष्मी का इसी धरती को गौरव है,
यहीं पर कर्मवती की कहीं,
दमक करके छिप गई कृपाण !
देवता की शय्या से उतर फूल अंगारों पर मचले,
यही है राम कृष्ण की भूमि यहीं जौहर के दीप जले,
गा रहा है जिनका अविराम,
चिरंतन यशोगान पवमान !
इसी संस्कृति का स्वर छूकर अगतिगति प्रगतिमयी बन गई,
इसी स्वर को सुनकर दानवों ध्वंस की थी पगध्वनि रुक गई,
इसी लय में मय होकर के,
प्रलय भी बन जाता निर्माण !
अपनी खुशियों को लुटा करके दूसरों के लिये,
दूर मंजिल है मगर चल पड़ा अकेला हूँ !
वह वियावाँ की हवा कर सकेगी क्या मेरा,
इसकी हस्ती से मैं हजार बार खेला हूँ !