हमारी अस्मिता, आदर्श की, पहिचान है हिन्दी
हमारी संस्कृति की आन-बान औ शान है हिन्दी।
समझ पाए जगत को हम इसी के माध्यम से ही,
हमारे राष्ट्र की अवधारणा की आन है हिन्दी।
सभी भावों, विचारों को वहन करने में है सक्षम,
हमारे देश के चिंतन की अविरल शान है हिन्दी।
कुछ इसकी बोलियाँ तो हैं कई भाषाओं पर भारी,
बहुत सी बोलियों का देख लो उन्वान है हिन्दी।
वो जो हम बोलते हैं बस वही लिखते हैं हिन्दी में,
सभी भाषाओं के सापेक्ष कुछ आसान है हिन्दी।
ख़ुशी या ग़म अधिक हो तब इसी में सोचते हैं हम,
सनातन सोच की यारो सहज सन्तान है हिन्दी।
इसे विज्ञान, जन-जीवन, गणित, व्यापार से जोड़ें,
मुझे लगता है उन्नति की अपरमित खान है हिन्दी।
-वीरेन्द्र कुमार शेखर