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हमारे हाथ / नवनीत पाण्डे

अलसुबह
नींद से जागने से
रात को सोने तक
कितनी चीज़ें
गुज़रती है हाथों से होकर
पता नहीं
क्या-क्या करते हैं हाथ
पता नहीं
कुछ भी नहीं रहता टिका
हाथों के हाथ
घिस जाती है
झूठी पड़ जाती है
हस्तरेखाएं भी
वक्त गए
फ़िर भी पाले रहते हैं हम
भ्रम
सब हैं हमारे साथ
सब कुछ है
हमारे हाथ