Last modified on 3 दिसम्बर 2021, at 23:46

हमे क्या / सुरेश कुमार शुक्ल 'संदेश'

टेर रही चाँदनी, हमें क्या।
सजी उधर रागनी, हमें क्या।

पास नहीं जब तुम ही आये,
बरस रही सावनी, हमें क्या।

हँसे फूल कलियाँ मुस्कायीं।
महक उठी मधुबनी, हमें क्या।

फिर सपनों के सोपनों में
खनक उठी करधनी, हमें क्या।

महफिल से लौटी है जब से
गजल हुई अनमनी, हमें क्या।

चाहे खरी मुहर हो चाहे
हीरे की हो कनी, हमें क्या।
 
धूने की विभूति हो या फिर
अंगराग चन्दनी, हमें क्या।

पूनम की ज्योत्सना धवल हो
चाहे मावस धनी, हमें क्या।

आँसू आँसू रहे जिन्दगी
या फिर सुख से सनी, हमें क्या।