आन्ही में/उड़िआएल पत्ता निअन हे
हम्मर गाँव्-
फेड़ के डहुँगी/फनगी से टूटल
माटी से उठके असमान करे
असमान से माटी ओरे
चकर बुन्नी खाइत/घिसटाइत
जी रहल हे हम्मर गाँव।
आँख के सीध में
खदबदा के उगल
इंजोरिआ के गाछी
गिन देहे जखनी
परिचय के आखर
तखनी
मौलसिरी के फूल निअन।
खिल जाहे - हमर गाँव।
लेकिन
रउदा के तिरमिरी
सोख लेहे जइसे पानी
आउ हो जाहे झाम
मौलसिरी के फूल
ओइसहीं/अनमन ओइसहीं
झाम हो जाहे, हमर गाँव
तब,
जब, लहक जाहे हवा।
कज्जल, साफ
सबाद भरल
मीठ पानी हे, हमर गाँव के
कूआँ के
आहर-पोखर के
आँखो के।
आझ, लाल हो गेल हे
पानी
आँख के/कूआँ के/
पोखर के/आहर के/
खेत में उगऽ हल
धान/गेहूँ/सरसो
केतारी आउ चना
उहँइ-उगल हे
इरखा
डाह
दुसमनी
आउ घिरना।
आम, महुआ, नीम
पाँकर, पीपर, बर
बाँटित हे -
फर, फूल, गन्ह
आउ छहुरी के जगह
अप्पन-आन के बुध
छल-परपंच के लूर
अगलगौनी तितकी
कि जहाँ होबऽ हल
(कहिओ)
पंचइती, धरम कथा आउ किरतन
उमड़ऽहल-ढोलक-झाल के सुर
मुदा, आझ -
छहुरी के हवा -
हो गेल हे गरम
उठे लगल हे धारी-ततैया के।
न जानऽ हल हमर गाँव
चोरी-चंडाली
अब, गाँवे में हे
इसकूल/आँगनबाड़ी
अलकतरा पोतल सड़क
आगेल हमर गाँव।
ए बाबू
सहर जएबऽ?
तनी पुछिहऽ तो सहर से
कि कहिआ होएत उज्जर
ई करिआ संडक,
कहिआ चीन्हत हमरा
हमर गाँव।