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हम-1 / विजया सती

अपनी उलझनें ख़ुद बढ़ाते हुए हम

जाल में उलझ कर

छटपटाते हैं।

बेवज़ह छोटी-छोटी बातों को

तूल देकर

सूनेपन में

सिमटे रह जाते हैं।

न हम सूखे रेगिस्तान हैं

न अथाह जल-प्रसार में

अलग छाए टापू

फिर क्यों

एक-दूसरे से

इस तरह

कट जाते हैं ?