अपनी उलझनें ख़ुद बढ़ाते हुए हम
जाल में उलझ कर
छटपटाते हैं।
बेवज़ह छोटी-छोटी बातों को
तूल देकर
सूनेपन में
सिमटे रह जाते हैं।
न हम सूखे रेगिस्तान हैं
न अथाह जल-प्रसार में
अलग छाए टापू
फिर क्यों
एक-दूसरे से
इस तरह
कट जाते हैं ?
अपनी उलझनें ख़ुद बढ़ाते हुए हम
जाल में उलझ कर
छटपटाते हैं।
बेवज़ह छोटी-छोटी बातों को
तूल देकर
सूनेपन में
सिमटे रह जाते हैं।
न हम सूखे रेगिस्तान हैं
न अथाह जल-प्रसार में
अलग छाए टापू
फिर क्यों
एक-दूसरे से
इस तरह
कट जाते हैं ?