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हम अधिकारी नहीं समय की अनुकम्पाओं के! / बलबीर सिंह 'रंग'

हम अधिकारी नहीं समय की अनुकम्पाओं के!
पुराना सब कुछ बुरा न रहा,
नया भी सब कुछ नहीं महान;
प्रगति के संग सँवरते रहे,
चिरंतन जीवन के प्रतिमान।

हम प्रतिहारी नहीं टूटती परम्पराओं के!
हम अधिकारी नहीं समय की अनुकम्पाओं के!

बधिरता को क्या सौंपा जाय?
शांति का ओजस्वी आह्वान,
क्रांति क्या कर ले अंगीकार;
आधुनिक सामंती परिधान?

हम सहकारी नहीं, अनर्गल आशंकाओं के!
हम अधिकारी नहीं समय की अनुकम्पाओं के!

तिमिर की शर-शय्या पर पड़ा,
दे रहा है प्रवचन दिनमान;
निरंतर उद्घाटित हो रहा,
चाँद तारों का अनुसंधान;

हम आभारी नहीं कलाविद् अभियन्ताओं के!
हम अधिकारी नहीं समय की अनुकम्पाओं के!