ओ जे
अपन बच्चाकें बिलखैत छोड़ि
आनक बच्चाकें छाती लगा
दुलारि-दुलारि चुप्प करबैत अछि
अपन ज्वरसँ तपैत बच्चाकें
अदृष्टक भरोसे गोसाँइ घरमे छोड़ि
आनक बच्चाक प्रातःकालीन जलखइ लेल
सुज्जीक नरम-गरम हलुआ बनबैत अछि
ज्वरसँ तपैत बच्चा केर
ओहि बहिकिरनी माइक
अहुरिया कटैत मोनक
हम बौक-बेहाल ममता छी
ओ जे
प्रायशः भुखले रहि क’
बेढ़ीक बेढ़ीक अन्न उपजबैत अछि
स्वयं नाँगट रहि क’
दुनिया भरिक शीलवंत देह
रेशमसँ सजबैत अछि
टुटल-टाइल मड़इमे रहि क’
गगनचुम्बी महल बनबैत अछि ओहि गमार खेतिहर
आ अचेत मजूरक हृदय केर
हम थाकल-ठेहिआएल आस्था छी
ओ जे
पुस्त दर पुस्त
निस्सीममे घर बनबैत आएल अछि देशी सीमाक रक्षा करैत
विदेशी सीमामे जा क’ मरैत अछि
बीघाक बीघा मालिकक गाछी लगा,
बेटाक हाथें अन्तमे
बिना जारनिएँ जरैत अछि
जीवन भरि मालक चरवाही करैत
जे छल्हिगर दही
कि गाढ़ एकल दूध
कहियो चीखि नहि सकैत अछि
बरखक बरख स्कूलमे
झाडू लगबैत रहलाक बादो
दू कोड़ीसँ अधिक गिनती
जे कहियो सीख नहि पबैत अछि,
ओहि स्वादहीन चरबाह
कि गृहविहीन घरबैया
आ कि स्वत्वहीन गाछीक लगवैया केर
वंचनामे पड़ल परितप्त मोनक
हम भाषाहीन भावना छी
ओ जे
मटिया तेलक अभावमे
साँझे खा-पीबि क’ प्रतिदिन,
निचैन भ’ लैत अछि
आ ककरो कोनो जलसामे प्रकाश-पुंज माथ पर उठौने
घंटाक घंटा अन्हारमे ठाढ़ रहैत अछि
आ जे
अन्हारेमे कहियो आँखि फोलि
अन्हारे में कोनो दिन
अपन भावहीन आँखि मूनि लैत अछि
अनन्त कालसँ अन्हारमे हेड़ाएल
ओहि मनुक्खक सुनसान हृदय केर
हम उदीयमान सविता छी
ओ जे
स्कूल जएबाक बेरमे
अहाँक आँगनक अँइठ मँजैत रहल अछि
दलान पर बड़द नमा
बाधमे महीस चरबैत रहल अछि
आ जे
अखनो कोनो पुस्तकालय नहि जा क’
करीनक माथ पर ठाढ़ अछि
आ अहाँक बीघाक बीघा
पिआसल खेतकें पटबैत अछि
फैक्ट्रीक धमनभट्ठीमे, फार आ फरसा लेल
टनक टन लोहकें गलबैत अछि,
गामसँ सिनेहपूर्वक पठाओल
घरवालीक चिट्ठी
जे एकान्त कोन ताकि कोनो
अनकासँ पढ़बैत अछि
जन्मेकालसँ
कोनो ने कोने खुट्टा संग खुटेसल
बिनु चैनक दिन, आ स्वप्नहीन रातिमे औनाइत
ओहि विवश आ विकल्पहीन मनुक्खक
हम अन्तर्व्यथाक कविता छी।