हम कुछ ऐसे टूटे मन से
जैसे शीशा बिखरे छन से
लो हम निकले उनके मन से
यानी निकले इक उलझन से
तेरा चेहरा तो अपना है
तू क्यूँ डरता है दरपन से
मेरे दिल की धड़कन को तू
सुन अपने दिल की धड़कन से
गद्दी का वारिस लौटा था
राम कहाँ लौटे थे वन से
हम कुछ ऐसे टूटे मन से
जैसे शीशा बिखरे छन से
लो हम निकले उनके मन से
यानी निकले इक उलझन से
तेरा चेहरा तो अपना है
तू क्यूँ डरता है दरपन से
मेरे दिल की धड़कन को तू
सुन अपने दिल की धड़कन से
गद्दी का वारिस लौटा था
राम कहाँ लौटे थे वन से