Last modified on 29 अक्टूबर 2017, at 16:53

हम चुप रहते हैं / जय चक्रवर्ती

बात –बात पर करते यूँ तो
मन की बातें
मगर ज़रूरी जहाँ वहाँ
हम चुप रहते हैं

मरते हैं, मरने दो
बच्चे हों, किसान हों या जवान हों
ये पैदा ही होते हैं मरने को
हम क्यों परेशान हों

दुनिया चिल्लाती है,
हम कब कुछ कहते हैं?

हो कोई बेरोजगार या
भूखा –नंगा हो हमको क्या!
महगाई –डायन हो अथवा
वक़्त –लफंगा हो हमको क्या!!

हम तो बस अपनी ही
चिंता मे दहते हैं

बुद्धिजीवियों –कलमजीवियों की
होने दो अब हत्याएं
शान्त करो वे स्वर जो
सत्ता की दीवारों से टकराएँ

सच दीखे सच,
हम यह कभी नहीं सहते हैं