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हम जब तेरे ख़याल में गहरे उतर गए / श्याम कश्यप बेचैन

हम जब तेरे ख़याल में गहरे उतर गए
आँखों के सामने कई चेहरे उभर गए

बतला रही हैं आपके माथे की सलवटें
कितना हिला के आपको तूफ़ाँ गुज़र गए

बौनी हैं इन बुलंद दीवारों की चौखटें
इस घर में जो भी आए झुका कर वो सर गए

कह कर कि उँगलियों पे नहीं नाचने के हम
धागे से टूट-टूट के दाने बिखर गए

कैसे किसी लकीर को देखोगे ज्योतिषी
देखो ये मेरे हाथ तो छालों से भर गए

उन आइनों पे धूल की पर्तें चढ़ी मिलीं
जिन आइनों के काँच से पारे उतर गए