हम जब होंगे बड़े, देखना
ऐसा नहीं रहेगा देश।
अब भी कुछ लोगों के दिल में
नफरत अधिक प्यार है कम,
हम जब होंगे बड़े, घृणा का
नाम मिटा कर लेंगे दम।
हिंसा के विषमय प्रवाह में
कब तक और बहेगा देश ?
भ्रष्टाचार, जमाखोरी की
आदत बड़ी पुरानी है,
ये कुरीतियाँ मिटा हमें तो
नई चेतना लानी है।
एक घरौंदे जैसा आखिर
कितना और ढहेगा देश ?
इस की बागडोर हाथों में
जरा हमारे आने दो,
पाँव हमारे थोड़े-से बस,
जीवन में टिक जाने दो।
हम खाते है शपथ, दुर्दशा
कोई नहीं सहेगा देश।
हम भारत का झंडा हिमगिरि
से ऊँचा फहरा देंगे,
रेगिस्तान बंजरों तक में
हरियाली लहरा देंगे।
घोर अभावों की ज्वाला में
बिल्कुल नहीं दहेगा देश।