कैसे बीते
दिवस हमारे
हम जाने या राम !
सहती रही
सब कुछ काया
मलिन हुआ
परिवेश
सूख चला
नदिया का पानी,
सारा जीवन
रेत
उगे काँस
मन के कूलों पर
उजड़ा रूप ललाम ।
प्यार हमारा
ज्यों इकतारा,
गूँज-गूँज
मर जाय
जैसे निपट
बावला जोगी
रो-रो
चित्त उड़ाए
बात पीपल
घर-द्वार सिवाने
सबको किया प्रणाम ।
आँगन की
तुलसी मुरझाई
क्षीण हुए
सब पात,
साँयकाल
डोलता सर पर
बूढ़ा नीम उदास
हाय रे ! वह
बचपन का घरवा
बिना दिए की शाम ।
सुन रे जल
सुन री ओ माटी
सुन रे
ओ आकाश,
सुन रे
ओ प्राणो के दियना
सुन रे
ओ वातास
दुःख की
इस तीरथ-यात्रा में
पल न मिला विश्राम ।