हम जुवती, पति गेलाह बिदेस,
लग नहि बसए पड़उसिहु लेस,
सासु ननन्द किछुआओ नहि जान,
आँखि रतौन्धी, सुनए न कान,
जागह पथिक, जाह जनु भोर ,
राति अन्धार, गाम बड़ चोर ,
सपनेहु भाओर न देअ कोटबार,
पओलेहु लोते न करए बिचार,
नृप इथि काहु करथि नहि साति ,
पुरख महत सब हमर सजाति ,
विद्यापति कवि एह रस गाब ,
उकुतिहि भाव जनाब !