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हम तब आयेंगें / अमरजीत कौंके

ऐ छोटे-छोटे पक्षियो!
मेरे पास आओ

मेरी हथेलियों पर
तुम्हारे लिये चुग्गा है
मेरे पास तुम्हारी चोंच के लिये
पानी है...

पक्षी बोले -
ना... ना...
ना... ना...

मैंने कहा -
आओ
मेरे कँधे पर बैठ जाओ
मैं चाहता हूँ
तुम्हारी भाषा समझनी
तुम्हारी भाषा में
तुम्हारे साथ बात करनी
चाहता हूँ
तुम्हें पूछना चाहता हूँ
कि दुनियां तुम्हें
कैसी है लगती?

पक्षी बोले -
ना... ना...
ना... ना...

मैंने कहा -
क्या हुआ?
क्या हुआ?
ऐ छोटे-छोटे परिंदों !

पक्षी मुझ से डरते
दूर भागते
चीं चीं की भाषा में बोले...

 
पूछने लगे-
तुम झूठ बोलते हो

-हाँ...

तुम हिंसा करते हो

-हाँ...

तुम हमारे छोटे छोटे साथियों को
आलू बैंगन समझ कर
खा जाते हो...?

-हाँ... हाँ...
फिर हमने
तुम्हारे पास नहीं आना
हम तभी आएंगे तुम्हारे पास
जब तू
पक्षियों जैसा होगा
जब तू हमारे जैसा होगा...

अभी तो
मनुष्य है तू
बहुत डरावना।