हम नहीं / लीलाधर जगूड़ी

आर से पार से लौट पौट आती हैं चिड़ियाँ
मँझधार से
फिर पल्‍टी खा फुदक फुदक जा नहा आती हैं
जो नहीं नहातीं वे खेलती हैं छर-छराती वेगवती धार से

आपस में यों ही टकराती हैं फुलाती हैं बदन
गरम होती हैं अपने आपसे
इसमें खुशी यह है कि वे नहाती नहीं है डरकर किसी पाप से

मादाएँ मर्दाने सब वे खाते हैं कीड़े फल और दाने
आते जाते हैं आसमान से रहते हैं जमीन पर
पंख लड़ाते हैं बादलों से
स्‍वर बढ़ाते हैं संकट को देखकर

इंद्रधनुषों से छूटे हुए तीर सी आती हैं चिड़ियाँ अधीर सी
प्‍यार करते हैं इनके झुंड के झुंड गेहूँ और धान से
झील झरने नदी नाले बाग बंजर सब जगह सब कुछ कर लेते हैं
नालियों में भी मुँह मार लेते हैं
चलकर पशुओं की पीठ खुजला देते हैं
जूँ बीन लेते हैं सम्‍मान से

एक पल आते हैं दूसरे पल चले जाते हैं उड़े
पत्‍नी बने बिना माँ बन जाती हैं चिड़ियाँ
बिना शादी पिता बन जाते हैं चिड़े
घरों से भी बढ़िया वे बनाते हैं घोंसले

हम हैं कि बने रहते हैं चिड़-चिड़े
आजादी से नहीं उठा सकते उनके से चोंचले
उनकी सी उड़ान और उनकी सी मर्यादा बहुत मुश्किल है
हम मारते हैं दूसरे को मर जाते हैं अपनी ही मार से
आर से पार से लौट-पौट आती हैं चिड़ियाँ मँझधार से
हम नहीं।

इस पृष्ठ को बेहतर बनाने में मदद करें!

Keep track of this page and all changes to it.