♦ रचनाकार: अज्ञात
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हम परदेशी पावणां,
दो दिन का मेजवान
आखीर चलना अंत को
नीरगुण घर जांणा...
हम परदेशी...
(१) नांद से बिंद जमाईया,
जैसे कुंभ रे काचा
काचा कुंभ जळ ना रहे
एक दिन होयगा विनाशा...
हम परदेशी...
(२) खाया पिया सो आपणां,
दिया लिया सो लाभ
एक दिन अचरज होयगा
उठ कर लागो गे वाट...
हम परदेशी...
(३) ब्रह्मगीर ब्रह्म ध्यान में,
ब्रह्मा ही लखाया
ब्रह्मा ब्रह्मा मिसरीत भये
करी ब्रह्म की सेवा...
हम परदेशी...