Last modified on 4 दिसम्बर 2010, at 18:19

हम प्याले थे प्रीत सुधा रस भरे / कुमार अनिल


हम प्याले थे प्रीत सुधा रस भरे,
              क्यों जाने ज़हर का जाम हुए ।
आगाज़ में उषा बन के उगे,
              अंजाम में ढलती शाम हुए ।
एक प्यार के सौदे की बात ही क्या,
              हर काम में हम नाकाम हुए ।
हमें नाम भी अपना न याद रहा,
               इतना जग में बदनाम हुए ।