हम प्याले थे प्रीत सुधा रस भरे,
क्यों जाने ज़हर का जाम हुए ।
आगाज़ में उषा बन के उगे,
अंजाम में ढलती शाम हुए ।
एक प्यार के सौदे की बात ही क्या,
हर काम में हम नाकाम हुए ।
हमें नाम भी अपना न याद रहा,
इतना जग में बदनाम हुए ।