Last modified on 9 जनवरी 2011, at 21:26

हम बिंदु हैं / केदारनाथ अग्रवाल

हम बिंदु हैं
बिंदुओं के सगे
लकीर में लगे
सबसे जुड़े
जहाँ भी गए
लकीर हो गए
लय में लीन हो गए

रचनाकाल: २३-१०-१९७०