कहते हैं भारत में
शुरू-शुरू में
चार संतानें हुईं ब्रह्मा से –
ब्राह्मण/क्षत्रिय/वैश्य/शूद्र
ब्राह्मण ब्रह्मा के मुख से
क्षत्रिय भुजा से,
वैश्य जाँघ से,
और शूद्र पाँव से ।
मनु-स्मृति की स्मृति
संजोयी है हमारे दिलो-दिमाग में
यह जानते हुए कि
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र
वहाँ से नहीं पैदा हुए
जहाँ से सारी दुनिया पैदा हुई है
और हो रही है
लेकिन बेदम, बेमन
इस सत्य को हम लोग
'महटिया' देते हैं,
सवाल करने वाले को धकिया देते हैं
क्योंकि हमारी सभ्यता सर्वाधिक प्राचीन है,
तुलना में सिर्फ यूनान, मिस्र, चीन हैं ।
हम हर साल पहले खेतों में,
जोतते-बोते हैं
तभी बाद में फसल काटते हैं
किन्तु बिना बीज के
मानव-वंश होने का
भ्रम पालते/डींग हाँकते हैं
वैदिक काल को आधुनिक विज्ञान का
प्रणेता मानते हैं
हमारे पुरखे ऋषि-मुनि थे,
तपस्या में लीन थे
उनके लिए तप
या खाये घी की महक
हमारी देह से सूँघ सकते हैं !
फिर वैज्ञानिक पुरखों ने ही
वर्णाश्रम धर्म के कट्टर विरोधी
बुद्ध को 'शरण' दिया
गले में लगा
दसवाँ अवतार मान लिया,
इसीलिए वैज्ञानिक पुरखों
के हम वैज्ञानिक वंशजों ने
उस मूर्तिभंजक बुद्ध को
अपनी बुद्धि से
निर्जीव मूर्ति में ढाल दिया,
आम लोगों के 'संघ' में
शरीक होने का परिणाम
पहले ही जान लिया
इसीलिए उसके प्रणेता को,
रण नेता को
पत्थरों में जकड़ दिया
हमेशा-हमेशा के लिए ।
और दोस्तों ! देश के दुश्मनों !
तुम्हारे चेहरे के बहुरंगी भाव से,
दुरंगी चाल से
लगता है
तुम सब मिलकर अगला
ग्यारहवाँ अवतार बनाओगे,
तभी तो वैज्ञानिक पुरखों की
जायज संतान कहलाओगे
शायद इसीलिए गांधी को तुमने
अचानक जान से लूटा था,
बिल्ली के भाग्य से
सिकहर टूटा था !