हम सब ब्रह्म राक्षस / नवनीत पाण्डे

सच ही कहा था किसी ने
ब्रह्मराक्षस हमें
हम! ब्रह्मराक्षस ही तो हैं
जो आज भी बैठे हैं बरसों से
बावड़ी की गहराई में
फ़र्क आया है तो बस यह कि
हो गए हैं महाब्रह्म
उतर गए हैं कई सीढीयां
और..और नीचे
(कर रहे हैं साधना/बावड़ी सूखाने को)
बंद कर दिए हैं मजबूती से
बाबड़ी को स्वच्छ जल पहुंचाने वाले
समस्त जल स्रोतों को
और रोक दिए हैं
अपने विवादास्पद-उलझे
मगर मान्यताप्राप्त सिध्दांतों के लोथों से
मृदु जल के निकासी मोखों को
हमें पता है-
हम अपनी दुर्गंध, काई
बावड़ी में भर रहे हैं
सारी बावड़ी को
विषैली कर रहे हैं
हम यही करेंगे
नहीं डरेंगे
न ही मरेंगे
क्यूंकि-
हम राक्षस हैं, राक्षस
जो-
ब्रह्मामृत पीते हैं, कल्प-कल्पांतर जीते हैं
बांटते हैं ब्रह्मविष
हम ही तो हैं
भूत-वर्तमान और भविष्य के
जगदीश..

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