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हरपाल गाफ़िल के नाम / कांतिमोहन 'सोज़'

(हरपाल गाफ़िल के नाम)

क्या कहूँ तुझसे जुदा होके किधर जाऊँगा।
धूल बनकर तेरी राहों में बिखर जाऊँगा॥

मैं कोई चीख़ नहीं हूँ कि सुनाई देगी
एक सन्नाटे की मानिन्द पसर जाऊँगा।

कभी कोहरा कभी झोंका कभी लम्हा बनकर
मैं तुझे दूर से सहलाके गुज़र जाऊँगा।

मैं रक़ाबत भी निभाता हूं उसूलों के तहत
तेरा पैग़ाम भी दूँगा मैं अगर जाऊँगा।

मौत क्या चीज़ है इसका है मुझे इल्म मियाँ
तेरा अन्दाज़ा ग़लत है कि मैं डर जाऊँगा।

आख़िरी बार तेरी मान लूँ ए जज़्बए-दिल
उससे कुछ कहना है बेकार मगर जाऊँगा।

सोज़ बचता था मियाँ गर्मे-सफ़र होने से
थक के हर बार वो कहता था कि घर जाऊँगा॥

2002-2017