Last modified on 6 जनवरी 2008, at 04:43

हरा भरा संसार है / त्रिलोचन

हरा भरा संसार है आँखों के आगे

ताल भरे हैं, खेत भरे हैं

नई नई बालें लहराए

झूम रहे हैं धान हरे हैं

झरती है झीनी मंजरियाँ

खेल रही है खेल लहरियाँ

जीवन का विस्तार है आँखों के आगे


उड़ती उड़ती आ जाती है

देस देस की रंग रंग की

चिड़ियाँ सुख से छा जाती हैं

नए नए स्वर सुन पड़ते हैं

नए भाव मन में जड़ते हैं

अनदेखा उपहार है आँखों के आगे


गाता अलबेला चरवाहा

चौपायों को साल सँभाले

पार कर रहा है वह बाहा

गए साल तो ब्याह हुआ है

अभी अभी बस जुआ छुआ है

घर घरनी परिवार है आँखों के आगे

(रचना-काल - 28-10-48)