(राग शंखध्वनि-ताल त्रिताल)
हरिने आदर दिया जिसे, वह है गरीब भी अति धनवान।
हरिने प्यार किया जिससे, वह हुआ मूर्ख भी अति मतिमान॥
हरिने अपना कहा जिसे, वह भाग्यहीन सौभाग्य-निधान।
हरिने जिसे हृदय चिपटाया, उसके कोई नहीं समान॥
भाग्य-पुण्य, गुण-गौरव-सब सेवन करते उसकी पद-रज।
साधक-सिद्ध, प्रसिद्ध देव-किन्नर, ऋषि-मुनि, सुर-अधिपति, अज॥