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हरियाली / दुष्यन्त

हरा- भरा है
शहर की पॉश कॊलोनी का
हरेक घर।

उठती है आवाजें
ख़ुशियाँ, अठखेलियाँ, टीस, सिसकियाँ
और दब जाती है
बिना आंगन के घर में

बाहर सब कुछ वैसा ही है
लोकल बसें
दो-चार तांगे
पाँच-दस कारें
अनगिनत ऒटोरिक्शा और हाथ रिक्शा

हरा-भरा है
हरेक शहर की पॉश कॊलोनी का
हरेक घर।

 

मूल राजस्थानी से अनुवाद- मदन गोपाल लढ़ा