भूल-से ही सही
सूख रही किसी शाख पर ठूंठ की
फूट आए जो कोंपल कहीं कोई
ठूंठ हो रहा
ठूंठ फिर ठूंठ नहीं रह जाता
हरिया उठता है मन-ही-मन
हरियाता है जैसे
भरा-पूरा गाछ कोई !
भूल-से ही सही
सूख रही किसी शाख पर ठूंठ की
फूट आए जो कोंपल कहीं कोई
ठूंठ हो रहा
ठूंठ फिर ठूंठ नहीं रह जाता
हरिया उठता है मन-ही-मन
हरियाता है जैसे
भरा-पूरा गाछ कोई !