धनुष की पूजा करते समय सीता द्वारा धनुष को अलग उठाकर रखने का उल्लेख इस गीत में आया है। फिर, स्वयंवर होने पर वसिष्ठ मुनि के साथ राम और लक्ष्मण के जनकपुर जाने और धनुष तोड़कर सीता से विवाह करने का वर्णन भी इस गीत में हुआ है। लोकमानस ने इस गीत में विश्वामित्र ऋषि के स्थान पर वसिष्ठ मुनि का ेरख लिया है।
हरिहर गोबर ऐंगना नीपल, धनुखा धरल ओठगाँय<ref>किसी चीज का सहारा लेकर रखना</ref> हे।
देस देस सेॅ भूप सब आयल, धनुखा छुबिए छुबि जाय हे॥1॥
नगर अजोधा में बसै बसिठ मुनि, जहँ बसै लछुमन राम हे।
धनुखा उठाय कनकै<ref>थोड़ा सा</ref> पटकल, धनुखा भेल चारि खंड हे॥2॥
एक खंड धनुखा पुरबहिं राज, दोसर खंड गेल दखिन राज हे।
तीसर खंड धनुखा उपरहिं खसल, चारि खंड गेल बिलाय<ref>अंतर्धान होना; विलुप्त होना</ref> हे॥3॥
भेल बिहा<ref>विवाह</ref> परल सीथि<ref>माँग को सँवारकर बनाई हुई रेखा; सीमन्त</ref> सेनुर, सिया लेल अँगुरी लगाय हे॥4॥