दूर काली पथरीली चट्टान पर
झूमता है अकेला वह
एक वीराने को भरता हुआ
झरती पत्तियों के साथ
खाली हवाओं में रच रही है
हरी धुन कोई
हर सुर
सभी को शाख करता हुआ
हरी, सिहरी शाख !
(1980)
दूर काली पथरीली चट्टान पर
झूमता है अकेला वह
एक वीराने को भरता हुआ
झरती पत्तियों के साथ
खाली हवाओं में रच रही है
हरी धुन कोई
हर सुर
सभी को शाख करता हुआ
हरी, सिहरी शाख !
(1980)