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हरीम-ए-लफ़्ज़ में किस दर्जा बे-अदब निकला / इफ़्तिख़ार आरिफ़

हरीम-ए-लफ़्ज़ में किस दर्जा बे-अदब निकला
जिसे नजीब समझते थे कम-नसब निकला

सिपाह-ए-शाम के नेज़े पे आफ़ताब का सर
किस एहतिमाम से परवरदिगार-ए-शब निकला

हमारी गर्मी-ए-गुफ़्तार भी रही बे-सूद
किसी की चुप का भी मतलब अजब अजब निकला

बहम हुए भी मगर दिल की वहशतें न गईं
विसाल में भी दिलों का ग़ुबार कब निकला

अभी उठा भी नहीं था किसी का दस्त-ए-करम
के सारा शहर लिए कासा-ए-तलब निकला