घनी धुन्ध में गुम
यह वनखंडी
हर क़दम नई होती ही
जाती है
भटकाती है जितना
नया कर जाती है उतना ही—
अपनी घनी धुन्ध में
लेती हुई मुझे ।
—
18 नवम्बर 2009
घनी धुन्ध में गुम
यह वनखंडी
हर क़दम नई होती ही
जाती है
भटकाती है जितना
नया कर जाती है उतना ही—
अपनी घनी धुन्ध में
लेती हुई मुझे ।
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18 नवम्बर 2009