हर कोई अपनी एक दुनिया बनाता है
हर किसी में एक ईश्वर छुपा है।
हर दुनिया लेकिन अपने में निराली है
अपने ही ढँग पर चलती !
ईश्वर ! हर किसी का यही दुःख है।
(1984)
हर कोई अपनी एक दुनिया बनाता है
हर किसी में एक ईश्वर छुपा है।
हर दुनिया लेकिन अपने में निराली है
अपने ही ढँग पर चलती !
ईश्वर ! हर किसी का यही दुःख है।
(1984)