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हर किसी का दुःख / नंदकिशोर आचार्य


हर कोई अपनी एक दुनिया बनाता है
हर किसी में एक ईश्वर छुपा है।

हर दुनिया लेकिन अपने में निराली है
अपने ही ढँग पर चलती  !

ईश्वर ! हर किसी का यही दुःख है।

(1984)