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हर किसी को अब परायी सी लगें पगडंडियाँ / रंजना वर्मा

हर किसी को अब परायी सी लगें पगडंडियाँ
सड़क अपनी सौतजायी सी लगें पगडंडियाँ

रात काली सड़क काली एक घुलमिल हो रही
चाँदनी से पर नहायी सी लगें पगडंडियाँ

अब नहीं भाते पगों को ये अकेले रास्ते
झाड़ियों में मुँह छिपायी सी लगें पगडंडियाँ

जो चला करते थे इन पर वे नगर में खो गये
घुटी सीने में रुलायी सी लगें पगडंडियाँ

सड़क सब को ले गयी भीषण नगर की भीड़ में
और दिल पर चोट खायी सी लगें पगडंडियाँ

चूम डाले चरण कितने कर लिये कितने जतन
दुआ कोई बर न आयी सी लगें पगडंडियाँ

हैं बड़ी गुमसुम अकेली औ बड़ी बेचैन सी
आज खुद में ही समायी सी लगें पगडंडियाँ