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हर नोंक चुभती है / वत्सला पाण्डेय

हर नोंक
चुभती है
खरकती है
कसकती है
कुछ से बचते है
कुछ से दूर रहते है
कुछ को सहेजते है
सम्भालते है
सावधान भी रहते है
फिर भी चुभ जाती है
दर्द देती है
आँखों में नमी भी
हाँ फिर भी
कहलाती है
सेफ्टीपिन
तार की मुड़ी हुई
करीबी रिश्तों सी...